Bihar Darpan

[Glimpses Of Bihar]
Writer - Padmashree Dr Shanti Jain
Music - Sitaram Singh
Director - Jeetendra Kumar


  • भारत की सांस्कृतिक चेतना का निर्मल दर्पण है बिहार। बुद्ध महावीर और गुरुगोविन्द सिंह ने यहाँ क्रमशः बौद्ध जैन और खालसा पंथ की स्थापना की। राजनीति अध्यात्म राष्टीय चेतना दर्शन और कला में जिसका सानी नहीं, जहाँ लोकतंत्र की पहली किरण फूटी, वह बिहार भारत के मानचित्र का ध्रुवतारा है। ये बिहार है जिसके कण कण में इतिहास बोलता है।यहाँ सम्राट  अशोक जैसा महान शासक हुआ तो चाणक्य सरीखा विधिवेत्ता। बाणभट्ट जैसा विद्वान हुआ तो आर्यभट्ट जैसा खगोलविद्। कुँवर सिंह और पीर अली जैसे वीरों में यहाँ क्रान्ति का बिगुल बजाया तो महात्मा गाँधी नें इसी धरती पर अहिंसा का अलख जगाया। इसी धरती पर देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसा सपूत जन्मा जो स्वतंत्र भारत का प्रथम राष्टपति और बिहार का गौरव पुरुष बना। हमें नाज है उस बिहार पर जिसके आँगन में गंगा, गंडक, सोनभद्र, फल्गु, कोशी, कमला जैसी नदियाँ छलकती है। उसका कला वैभव शब्दों में नहीं समाता। अंग देश में सती बिहुला की लोकगाथा, मिथिला में विद्यापति के रसीले पद और भोजपुर में भिखारी ठाकुर की विदेसिया घुन जहाँ दिशा दिशा को संगीतमय बनाती है। जहाँ छठ जैसा अनूठा महापर्व मनाया जाता है और जहाँ के सोहर, पँवरिया, कजरी, झूमर, झरनी आदि गीतों से गाँव गली मुखर हैं। उस बिहार की छोटी सी झाँकी है यह बिहार दर्पण।

Bihar Gaurav Gaan

[Glimpses Of Bihar]
Writer - Padmashree Dr Shanti Jain
Music - Sitaram Singh
Director - Jeetendra Kumar

  • बिहार गौरव गान: माटी की महक, संस्कृति की गूंज
  • “दिशा-दिशा में लोक रंग का तार-तार है,
  • महका-महका सोंधी माटी का बिहार है।”
‘बिहार गौरव गान’ बिहार की सांस्कृतिक पहचान को स्वर और शब्दों में पिरोने वाला एक प्रेरणादायक गीत है, जिसकी रचना सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती शांति जैन ने की है तथा इसका संगीत संयोजन प्रख्यात संगीतकार श्री सीताराम सिंह द्वारा किया गया है।

वर्ष 1997 में बिहार युवा महोत्सव के अवसर पर इस गीत का प्रथम मंचन बिहार के मूर्धन्य नृत्याचार्य श्री विश्वबंधु जी के निर्देशन में हुआ। इस भव्य प्रस्तुति में 65 कलाकारों ने भाग लिया और गीत को रंगमंच पर अत्यंत कलात्मकता एवं गरिमा के साथ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने विशेष रूप से सराहा और इसकी सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदर्शन हेतु प्रेरित किया। यह प्रस्तुति बिहार की इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और लोक अस्मिता का एक सजीव प्रतिबिंब बन गई।

वर्ष 2006 में इस गीत का पुनः संशोधन एवं नव-निर्माण किया गया। इस संस्करण का निर्देशन तनवीर अख्तर, सुमन कुमार, सोमा चक्रवर्ती, विजय प्रकाश मिश्रा तथा जितेंद्र कुमार जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों ने किया। हालांकि, इसके मंचन में श्री विश्वबंधु जी की मूल निर्देशकीय छवि स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती रही। इस प्रस्तुति ने मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को अत्यंत प्रभावित किया, और तभी से यह गीत "बिहार की सांस्कृतिक पहचान" के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। आज बिहार का कोई भी महत्वपूर्ण आयोजन ‘बिहार गौरव गान’ के बिना अधूरा प्रतीत होता है।

इस गीत की प्रस्तुति पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणव मुखर्जी, डॉ. प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, श्री रामनाथ कोविंद तथा मॉरीशस के प्रधानमंत्री श्री नवीन चंद्र रामगुलाम के सम्मान में भी की जा चुकी है। श्री रामगुलाम को यह प्रस्तुति इतनी प्रिय लगी कि उन्होंने 2008 में मॉरीशस के स्वतंत्रता दिवस समारोह में इसकी विशेष प्रस्तुति आयोजित करवाई।

अब तक ‘बिहार गौरव गान’ की 2000 से अधिक प्रस्तुतियाँ बिहार एवं भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में सफलतापूर्वक हो चुकी हैं, और यह गीत आज भी बिहार की सांस्कृतिक गरिमा और गौरव का प्रतीक बना हुआ है।
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Barahmaasa

[Festivals Of Bihar]
Writer - Padmashree Dr Shanti Jain
Director - Jeetendra Kumar

  • बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग आपसी सौहार्द से रहते हैं। यह राज्य अंग, मगध, भोजपुर, मिथिलांचल और वज्जिकांचल – पाँच भागों में विभाजित है। भाषाई विविधता के बावजूद सभी क्षेत्रों की संस्कृति और परंपराएँ एक जैसी हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में बारह महीने होते हैं – चैत्र से फाल्गुन तक। प्रत्येक महीने में कोई न कोई पर्व या सांस्कृतिक परंपरा निभाई जाती है। इन्हीं पर्वों को एक सूत्र में बाँधता है – बारहमासा

चैत्र – नववर्ष का पहला महीना, श्रीराम जन्म और चैता गायन का समय।
वैशाख – शुभ कार्यों के लिए उत्तम, विशेषकर विवाहों के लिए।
ज्येष्ठ – वट सावित्री व्रत, पति की दीर्घायु के लिए व्रत और पूजा।
आषाढ़-श्रावण – वर्षा ऋतु में कजरी गायन और झूले की परंपरा।
भाद्रपद – श्रीकृष्ण जन्म, सोहर गीतों के माध्यम से उत्सव।
आश्विन – मां दुर्गा की आराधना और मगध में देवास की परंपरा।
कार्तिक – सबसे पावन महीना, गंगा स्नान और छठ पर्व का आयोजन।
अगहन – धान की कटाई, कटनी नृत्य और कृषि उत्सव।
पौष-माघ – श्रीराम-सीता विवाह और समदाउन गीत।
फाल्गुन – रंगों का उत्सव होली, नगरवासियों संग प्रभु राम का होली खेलना।
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Jharni

[Folk Dance Of Bihar]
Choreographer - Jeetendra Kumar

  • झरनी मिथिलांचल का एक पारंपरिक लोकनृत्य है, जिसे मुस्लिम समुदाय के पुरुष मुहर्रम के अवसर पर करते हैं। यह नृत्य करबला के शहीदों की याद में किया जाता है और शौर्य, त्याग व भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
नर्तकों के दोनों हाथों में बांस की फट्टी होती है, जिसे बारीक चीरकर बनाया गया होता है — इसी को 'झरनी' कहा जाता है। जब ये नर्तक एक-दूसरे पर उन फट्टियों को बजाते हैं, तो एक विशिष्ट आवाज निकलती है, जो युद्ध की टक्कर और उत्सर्ग की भावना को दर्शाती है।

झरनी नृत्य में ताल, गति और समर्पण का अनूठा संगम होता है। इसमें पारंपरिक परिधान, ढोल-नगाड़े और मुहर्रम के गीतों की संगति इसे और प्रभावशाली बनाती है।

मुख्य विशेषताएँ:

विशेष रूप से मुहर्रम पर किया जाने वाला पुरुषों का नृत्य

हाथों में बांस की पतली चिरी हुई फट्टी जिसे झरनी कहते हैं

इन फट्टियों को आपस में टकराकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है

नृत्य में शौर्य, श्रद्धा और शहादत का भाव प्रकट होता है
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Jat-Jatin

[Folk Dance Of Bihar]
Writer - Kunal 
Music - Raju Mishra
Choreographer - Jeetendra Kuma
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  • जट-जटिन, मैथिल लोक-जीवन में सन्निहित उद्देश्यपरक मनोरंजन का विलक्षण उदाहरण है। पारंपरिक रूप से, इसका आयोजन, सावन भादो के शुक्ल पक्ष की रात को किया जाता है। आयोजन का उद्देश्य होता है वृष्टि-देव, इन्द्र को प्रसन्न करना। ताकि समुचित वारिस हो, कृषि कार्य सफल हो, भरपूर अन्न उपजे तो जन-जीवन खुशहाल हो।
  • मिथिला के लोक-नाट्य, कल्पना प्रधान होकर भी आध्यात्मिक तथा सामाजिक सरोकारों से संपृक्त होती है। फलतः मनोरंजन के साथ-साथ, जीवन के रहस्यों एवं विलासिता के अमूर्त एवं प्रगाढ़ सत्वों का भी दिग्दर्शन कराता है।
  • जट-जटिन स्त्रियों की अपनी कला हैं। यहाँ नाट्य में वर्णित सारे पात्रों का अभिनय स्त्रियों के द्वारा ही किया जाता है तथा प्रेक्षक भी स्त्रियाँ ही होती हैं।
  • नाट्य में एक तरफ दांपत्य जीवन के मार्मिक पक्षों की प्रस्तुति है तो दूसरी तरफ दार्शनिक तथ्य भी सन्निहित हैं जिसका संबंध मूलतः तंत्र से है। अभिनय को अधिक उल्लासपूर्ण बनाने के लिए कतिपय स्थानीय प्रसंगों का स्वतः स्फूर्त समावेश कर लिया जाता हैं फलतः प्रदर्शन और अधिक उन्मुक्त तथा आह्लादकारी होता है।
  • पारंपरिक रूप से जट-जटिन का प्रदर्शन बिना किसी वाद्य यंत्र के ही किया जाता है। फिर भी संवाद, गीतों के माध्यम से व्यक्त होते हैं और यह अभिव्यक्ति नृत्य के आंगिक भंगिमाओं के साथ ही की जाती हैं।
  • बदलते समय के साथ, आज यह लोक-नाट्य लुप्तप्राय ही है। यही कारण है कि हमने इसे वृत्त नृत्य-नाट्य के रूप में प्रस्तृत करने का प्रयास किया है!
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Jhijhiya

[Folk Dance of Bihar]
 Choreography & Direction - Jeetendra Kumar

  • झिझिया एक देवी-उपासना आधारित लोकनृत्य है, जिसमें महिलाएं और किशोरियाँ मिट्टी के घड़े (जिसमें छोटे-छोटे छेद होते हैं) में दीपक जलाकर सिर पर रखती हैं और समूह में नृत्य करती हैं। यह नृत्य रात्रिकालीन होता है और विशेष रूप से माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
घड़े के भीतर की लौ देवी की शक्ति का प्रतीक होती है, और उसके प्रकाश को बचाए रखते हुए नृत्य करना साधना का रूप माना जाता है। इस दौरान नर्तकियाँ झिझिया गीत गाती हैं, जो देवी की स्तुति, लोककथाओं और सामाजिक संदेशों से ओतप्रोत होते हैं।

किंवदंती के अनुसार, जब किसी गांव में महामारी या संकट आता था, तो महिलाएं देवी से रक्षा की प्रार्थना करती थीं और झिझिया नृत्य करती थीं। यह नृत्य न केवल धार्मिक विश्वास है, बल्कि सामुदायिक एकता और स्त्री शक्ति का प्रतीक भी है।

मुख्य विशेषताएँ:

सिर पर छिद्रयुक्त घड़ा जिसमें जलता दीपक

समूहिक घेराव में नृत्य और गीत

देवी दुर्गा की आराधना और जनकल्याण की कामना

अंधकार में प्रकाश के प्रतीक के रूप में प्रदर्शन
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Jhoomar

[Folk Dance of Bihar]
 Choreography & Direction - Jeetendra Kumar

  • झूमर एक अत्यंत लोकप्रिय लोकनृत्य है, जो बिहार के आदिवासी और ग्रामीण समाज की सामूहिकता, श्रम-संस्कृति और उत्सवधर्मिता का प्रतीक है। यह नृत्य सामान्यतः स्त्री-पुरुषों द्वारा साथ में किया जाता है। नर्तक-नर्तकियाँ एक-दूसरे का हाथ थामकर अर्धवृत्त में झूमते हुए तालबद्ध तरीके से नृत्य करते हैं।
"झूमर" शब्द स्वयं 'झूमने' (लय में हिलने-डुलने) से आया है, और इस नृत्य में शरीर की प्राकृतिक झूमती गति ही इसकी पहचान है। नृत्य के साथ गाए जाने वाले गीत कृषि, प्रेम, प्रकृति और सामाजिक विषयों पर आधारित होते हैं।

यह नृत्य न सिर्फ मनोरंजन है, बल्कि ग्रामीण जीवन की सामूहिक चेतना और सांस्कृतिक आत्मा का भी प्रतिनिधित्व करता है।

मुख्य विशेषताएँ:

सामूहिक नृत्य जिसमें स्त्री-पुरुष साथ में भाग लेते हैं

हाथों में हाथ डाले अर्धवृत्त में झूमते हुए लयबद्ध गति

ढोल, मंजीरा, नगाड़ा आदि लोक वाद्य यंत्रों की संगति

गीतों में जीवन, श्रम, प्रेम और प्रकृति की झलक
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Batohiya

[Inspired by Bhikhari Thakur's Bideshiya]
Writer - Vivek Kumar 
Music & Direction  - Md. Jani
Concept & Choreography - Jeetendra Kumar

  • नाटक 'बटोहिया भिखारी ठाकुर की अमर कृति 'बिदेसिया से प्रेरित एक नवीन नाट्य प्रयोग है। यह नाटक आज के सामाजिक तथा पारिवारिक परिवेश में पनप रही मानसिक दूरियों के बीच एक सेतु बनाने वाला नाटक है। इसकी पृष्ठभूमि बिहार के होने के साथ-साथ सार्वभौमिक भी है। एक सामाजिक व्यक्तित्व की कहानी है- 'बटोहिया' जो सहृदय हैं, दयालु है, सभी लोगों के दुख सुख का साथी है।
  • गोपी जो कि गांव का एक साधारण सा गवैया कलाकार है, मंदिर में भजन कीर्तन करके किसी तरह अपना भरण-पोषण कर लेता है। गोपी की शादी एक खूबसूरत लड़की झुलनी से होती है। झुलनी को गोपी की गरीबी और उसका गाना बजाना पसंद नहीं है। वह चाहती है कि उसका पति कोई भी काम धाम कर के अच्छे पैसे कमाए। गोपी अपने गांव में गा-बजाकर संतुष्ट है लेकिन झुलनी उसे पैसा कमाने के लिए गांव छोड़ने पर मजबूर कर देती है।
  • गोपी गांव छोड़कर मुंबई चला आता है मुंबई में उसकी मुलाकात मशहूर अदाकारा सितारा बेगम से होती है। सितारा बेगम को अपनी रामलीला कंपनी के लिए राम की तलाश है। सितारा गोपी की कला से प्रभावित होकर न केवल उसे राम की भूमिका देती है बल्कि मन ही मन अपना दिल भी दे बैठती है।
  • कई महीने बीत जाने के उपरांत भी गोपी झुलनी की कोई सुध नहीं लेता है। गांव में झुलनी का रो रो कर बुरा हाल हो गया है।
  • जैसे ही इस बात का पता बटोही को चलता है, बटोही झुलनी को लेकर गोपी से मिलवाने मुंबई चले आते हैं और गोपी को पति पत्नी के संबंध का महत्व बताकर वापस लाते हैं।
  • कहानी के अंत में यही संदेश है कि हमारे आसपास एक बटोही की आवश्यकता है जो समाज में टूटते बिखरते रिश्तो को जोड़ने में एक कड़ी का काम करें यह बटोही कोई भी हो सकता है-दोस्त, परिवार तथा आप...
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Operation Cactus Lily

[Based On 1971 Indo-Pak War]
Music - Md. Jani
Design - Abhishek Chauhan
Concept, Choreography & Direction - Jeetendra Kumar

  • 1971 में भारतीय सेना के 'ऑपरेशन कैक्टस लिली' ने विश्व मानचित्र पर बांग्लादेश का अलग अस्तित्व स्थापित किया। निस्संदेह, इस ऑपरेशन में बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी का अमूल्य योगदान था, लेकिन भारतीय सेना, जनरल सैम मानिक शॉ और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता। बांग्लादेशी लोगों ने दो दशक से अधिक समय तक पाकिस्तानी सैनिकों के उत्पीड़न को झेला था। बांग्लादेशी नागरिकों ने अत्याचारी, बलात्कारी पाकिस्तानी सेना से मुक्ति पाने के लिए ही 'मुक्ति वाहिनी' का गठन किया था। इस लड़ाई में मुक्ति वाहिनी को भारत का पूरा समर्थन मिला। केवल सात दिनों तक चली लड़ाई ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। पूर्वी सेना और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ए. के. नियाज़ी ने 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस दिन को भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णिम विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है। युद्ध में बिहार और झारखंड के सैनिकों के विशेष योगदान को देखते हुए दोनों राज्यों के महामहिम राज्यपाल को आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर गुलमोहर मैत्री की ब्रांड एंबेसडर श्रेयसी सिंह की उपस्थिति भी विशेष थी। इस आयोजन का विजन बहुत स्पष्ट था। युद्ध में जाने वाला हर सैनिक सिर पर कफन बांधकर चलता है, इसमें कोई संदेह नहीं कि वे बहादुर हैं लेकिन क्या वह महिला (माँ, बहन, बेटी, पत्नी) जिसने उन्हें युद्ध में भेजा, किसी से कम वीर है? और 1971 की महिलाएं और भी अधिक वीर रही होंगी, क्योंकि तब उनकी पुरुषों पर निर्भरता आज की तुलना में अधिक थी। उन वीर नारियों के सम्मान में ऐसा आयोजन उनके जख्मों पर मरहम का काम करता होगा।
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Shanti ki Chah Buddha ki Raah

[Based On Mahatma Buddha's Thoughts]
Music - Raju Mishra
Concept - Bishwabandhu
 Choreography & Direction - Jeetendra Kumar

  • ‘शांति की चाह, बुद्ध की राह’ एक समसामयिक नृत्य-नाटिका है, जो आज की मानव सभ्यता में व्याप्त काम, क्रोध, लोभ, मोह, तृष्णा और अहंकार जैसे अवगुणों के कारण उत्पन्न अशांति को उजागर करती है। लगातार बढ़ रहे अपराध, शोषण और हिंसा से त्रस्त आम जन शांति की खोज में भटक रहा है।
कहानी एक पथिक से शुरू होती है, जो समाज की बुराइयों से भागता हुआ एक सच्चे इंसान की तलाश में है। उसे मार्ग में काम, क्रोध, घृणा और लोभ जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त व्यक्ति मिलते हैं, जो अपने आचरण से मानवता को शर्मसार करते हैं।

हताश और व्यथित पथिक अंततः बुद्ध के सिद्धांत—सत्य, करुणा और अहिंसा—के मार्ग पर चलकर शांति का अनुभव करता है।

नाटिका का सार है:

"अमन की प्यासी धरती को दो बुद्धदेव का अमर प्याम,
सत्य-अहिंसा के साए में पाएगी दुनिया आराम।"
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