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Surangan

बिहार के विलुप्त होती लोक गाथाओं एवं संस्कृतियों को पुनर्जीवित करने तथा नृत्य एवं संगीत के उत्थान के उद्देश्य से सांस्कृतिक संस्था सुरांगन की स्थापना दिसंबर 1959 को हुई थी। इसका प्रथम कार्यक्रम लंगट सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर की हीरक जयंती के अवसर पर हुआ था जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद उपस्थित थे। इस संस्था द्वारा देश एवं विदेशों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की लगभग 6000 से अधिक प्रदर्शन हो चुके हैं। सन् 1962 के कांग्रेस अधिवेशन में ग्रामीण विकास पर आधारित नृत्य नाटिका "ये भारत के गांव" की प्रस्तुति की गई जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू की सराहना प्राप्त हुई। चीनी आक्रमण के समय नृत्य नाटिका ई हमर हिमालय का प्रदर्शन संपूर्ण भारतवर्ष में जन जागृति एवं जन चेतना लाने के लिए किया गया तथा इसकी प्रस्तुति के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा कोष को आर्थिक सहयोग प्रदान किया गया था। सामाजिक सरोकारों के तहत संस्था द्वारा विभिन्न सामाजिक मुद्दों जैसे प्रदूषण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, नारी सशक्तिकरण, एड्स, पोलियो, मतदान, रक्तदान, बाल श्रम, बालिका शिक्षा, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार आदि विषयों पर नुक्कड़ नाटक तथा नृत्य नाटिकाओं की प्रस्तुति होती रही हैं। नृत्य एवं संगीत की परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए संस्था द्वारा युवक युवतियों को शास्त्रीय, लोक एवं सृजनात्मक नृत्य शैली का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। इस संस्था से जुड़े कलाकार विभिन्न टीवी चैनलों, फिल्म, सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालय में अच्छे पदों पर आसीन है और प्रतिष्ठित रूप से जीवन यापन कर रहे हैं। सुरांगन की यात्रा अपने समुचित प्रयासों, उत्साह और ऊर्जा के साथ निरंतर जारी है। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने एवं कला के संरक्षण संवर्धन के लिए यह संस्था सतत प्रयत्नशील है।

संबद्धता -
* रीजनल आउटरीच ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
* संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार
* भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार
* संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली
* उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज
* पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता
* दूरदर्शन केंद्र, पटना
* कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार
* सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार

उद्देश्य एवं लक्ष्य
*नृत्य, संगीत एवं अभिनय के माध्यम से देश में जन जागृति लाना
*पारंपरिक,लोक तथा शास्त्रीय नृत्य शैली का संरक्षण एवं संवर्धन
*पारंपरिक लोक शैलियों में रचनात्मक प्रयोग कर अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना
*युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से परिचय करवाना
*युवा पीढ़ी को निःशुल्क नृत्य की शिक्षा प्रदान कर कला जगत में आत्म निर्भर बनाना ....View More

Founder

बिहार में श्री विश्व बंधु का नाम लोकनृत्य के पर्याय के रूप में प्रतिष्ठित है।
23 नवम्बर 1930 को पटना में जन्मे श्री बंधु ने रचनात्मक नृत्य की शिक्षा प्रसिद्ध नृत्याचार्य पं. उदय शंकर से तथा शास्त्रीय नृत्य की विधिवत् दीक्षा पं. राम जीवन प्रसाद से प्राप्त की। उन्होंने न केवल बिहार के ग्रामीण अंचलों में पारंपरिक लोकनृत्यों का प्रचार-प्रसार किया, अपितु उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर एक नवीन प्रतिष्ठा प्रदान की। उनकी सृजनशीलता ने इन नृत्य शैलियों को कलात्मक परिष्कार प्रदान करते हुए विलुप्तप्राय रूपों में नवजीवन का संचार किया।

वर्ष 1959 से सतत सक्रिय रहते हुए, उन्होंने बिहार की सांस्कृतिक चेतना में गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर एवं राज्य तथा केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त उच्च पदों को अस्वीकार कर नृत्यकला को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया।

संगीत नाटक अकादमी के अंतर्गत अंतर्राज्यीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होंने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक सहित अनेक राज्यों में बिहार के लोकनृत्य का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने पटना स्थित भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के मंच से अनेक नृत्य-नाटकों का निर्देशन किया एवं विभिन्न नगरों में लोकनृत्य मंडलियों का नेतृत्व कर व्यापक सांस्कृतिक चेतना का प्रसार किया। विदेशों में, विशेषतः अमेरिका सहित कई देशों में उन्होंने भारतीय लोकनृत्य की गरिमा का विस्तार किया।

1959 में उन्होंने ‘सुरांगन’ नामक सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की, जो आज भी उनके मार्गदर्शन में कार्यरत है। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने जनजागरण के उद्देश्य से लोकनाट्यों के माध्यम से ग्रामीण जनसमुदाय को शासन की सामाजिक नीतियों जैसे—जनसंख्या नियंत्रण, स्त्री-पुरुष समानता, स्वच्छता, नारी सम्मान एवं दहेज-उन्मूलन—की ओर प्रेरित किया। भारत-चीन एवं भारत-पाक युद्धों के समय संस्था द्वारा प्रस्तुत देशभक्ति-प्रधान नृत्यों ने जनमानस को संगठित किया।

सुरांगन को कभी भी निजी लाभ के साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया गया। उन्होंने सदैव निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर लोकनृत्य की परंपरा को भावी पीढ़ी तक पहुँचाया, भले ही इसके परिणामस्वरूप उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो।

उनकी अतुलनीय सेवाओं के लिए उन्हें राज्य, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है, जिनमें बिहार कला श्री परिषद द्वारा नागार्जुन शिखर सम्मान, बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा बिहार कलाकार सम्मान, संगीत नाटक अकादमी का टैगोर सम्मान, बिहार सरकार द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, तथा भारत सरकार द्वारा प्रदत्त राष्ट्रीय टैगोर पुरस्कार उल्लेखनीय हैं। उन्हें बिहार के “कला और संस्कृति के 100 रत्नों” में भी सम्मिलित किया गया है।

Director

बिहार के प्रतिनिधि नर्तक जीतेन्द्र कुमार लोकनृत्य श्री विश्वबन्धु जी से, भरतनाट्यम श्री रामजीवन प्रसाद से तथा उदयशंकर सृजनात्मक नृत्य पद्मविभूषण श्रीमती अमला शंकर जी एवं ममता शंकर जी से विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त कर देश भर में अपनी पहचान एक नर्त्तक एवं कोरियोग्राफर के रूप में बना चुके है।
हिरन-हिरनी, बोधिलाभ, झिझिया, तिलोत्तमा,राजनर्तकी कोशा, चित्रांगदा, जट-जटिन, बारहमासा, बिहार दर्पण आदि दर्जनों नृत्य नाटिका के निर्देशक जीतेन्द्र कुमार ने बिहार सरकार के लिए कई गीतों को निर्देशित किया है जिनमें "उठो सहेली" हुनरमंद, आँखों में चाँद खिला, लोकतंत्र का अजातशत्रु, साइकिल गीत, किलकारी गीत, शिक्षा गीत, तथा 'बिहार गौरव गान' प्रमुख हैं। बिहार के महत्वपूर्ण आयोजनों में इनकी प्रस्तुति होती रही है।
इनके द्वारा निर्देशित 'बिहार गौरव गान' तथा 'बिहार दर्पण' को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो चुकी है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल एवं श्री प्रणव मुखर्जी तत्कालीन राज्यपाल देवानन्द कुवँर, वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के द्वारा ये कार्यक्रम काफी सराहे गये हैं।
वर्ष 2008 में मौरिशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर जीतेन्द्र कुमार द्वारा निर्देशित बिहार गौरव गान का प्रदर्शन मौरिशस में भी किया जा चुका है और ये मौरिशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित भी हो चुके है। इन्होंने दिल्ली में आयोजित स्वतंत्रता दिवस के मुख्य समारोह में झरनी, झिझिया, डोमकच एवं सामाचकेवा की प्रस्तुति देकर बिहार की सांस्कृतिक परम्परा को विशिष्ट पहचान दिलायी है। इसके अतिरिक्त ये गीत एवं नाटक प्रभाग, सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, तथा दूरदर्शन केन्द्र, पटना के आकस्मिक कलाकार भी रह चुके है।
इनके द्वारा गोपाल सिंह नेपाली की जन्म शताब्दी के अवसर पर डी.डी. भारती के लिए विशेष रूप से तैयार नृत्य में, नृत्य अभिनय एवं नृत्य निर्देशन भी किया गया है।
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्कॉलरशिप प्राप्त जीतेन्द्र कुमार संस्कृति मंत्रालय के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों के माध्यम से उ०प्र०, म०प्र०, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, सिक्किम, आसाम आदि राज्यों में आयोजित राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी दे चुके है।
लोकनृत्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिहार सरकार ने इन्हे अम्बपाली युवा पुरस्कार तथा संगीत नाटक  अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा उस्ताद  बिस्मिल्लाह खान युवा सम्मान से सम्मानित किया है।

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